रायपुर – ॐ श्री शिरडी साईं दरबार महादेवघाट रायपुरा में इस वर्ष रजत जयंती उत्सव धूमधाम से मनाया जायेगा । दरअसल साईं परिवार के लिए यह वर्ष 2024 अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं हर्ष उल्लास का वर्ष है क्योंकि यह मंदिर स्थापना का रजत जयंती 25 वाँ वर्ष है साईं परिवार द्वारा प्रति वर्ष तीन दिवसी वार्षिक उत्सव का आयोजन अविरल रूप से किया जा रहा है । यह पुनीत कार्य श्री साईंनाथ महाराज की कृपा एवं पूज्य गुरुजी के आशीर्वाद के बिना संभव हो ही नहीं सकता ।
साईं दरबार मंदिर रायपुरा का इतिहास
इस मंदिर का भूमि पूजन 6 अक्तूबर 1997 एवं प्राण प्रतिष्ठा 1999 / 28/अप्रेल को पूज्य गुरुजी डॉ श्रीचंद्रभानु सतपथी जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ, द्वारिकमाई भूमिपूजन पूज्य गुरुजी डॉ.चंद्रभानु सतपथी एवं गुरुमां के करकमलों द्वारा 13 अप्रैल 2000 को संपन्न हुआ धूनि स्थापना 26 अप्रैल 2001 को संपन्न हुआ एवं पूज्य गुरुजी के करकमलों द्वारा 12 दिसंबर 2002 को मंदिर गर्भगृह में बाबा की पादुका स्थापित की गई । प्राणप्रतिष्ठा दिवस से निरंतर साईं परिवार द्वारा प्रतिवर्ष इन तिथियों को वार्षिक उत्सव के रूप में आयोजित किया जाता है । इस तीन दिवसी पावन उत्सव में विभिन्न राज्यों से काफी संख्या में श्रद्धालुजन पूरे हर्षोउल्लास के साथ उपस्थित होकर उत्सव में सम्मिलित होते हैं।
लोगो के लिऐ रायपुरा का साईं धाम उनकी आस्था का केंद्र है । दरबआर से जुड़े भक्तों की आस्था है कि दरबार से जुड़ने के बाद उनके जीवन में समय समय पर आए कष्टों और दुःख का निवारण बाबा बिना बोले ही करते हैं और उनके जीवन में आनंद की अनुभूति होती है । यही कारण है कि मंदिर प्रांगण में न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों से भी लोग बड़ी संख्या में बाबा के दर्शन लाभ लेने आते हैं । मंदिर के तलघर में बने ध्यान कक्ष जिसे तुंगी कहा जाता है वहां लोगो को ध्यान और साधना करने से आत्मीय शांति मिलती है । छत्तीसगढ़ का ये एकमात्र स्थान है जहां सभी दिव्य गुरुओं जैसे : लाहिड़ी महाशय, बाबा नीम करोली और अन्य गुरुओं की शक्तियां एक ही ध्यान कक्ष में होने का आभास उनके तैल चित्र के सामने बैठकर ध्यान करने से होता है ।
हर वर्ष इस तरह के आयोजन के पीछे का ये है कारण –
हर वर्ष 26 अप्रेल से 28 अप्रेल तक मन्दिर प्रांगण में विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते है जैसे :– भजन , साईं सचरित्र परायण , श्रीगुरू भागवत परायण , श्री सत्यनारायण पूजन , पादुका पूजन , सांस्कृतिक कार्यक्रम ,भण्डार , शोभायात्रा एवं पालकी आदि ।
पालकी यात्रा एवं शोभायात्रा के उद्देश्य पर यदि गंभीरता पूर्वक विचार किया जाए , तो उसके कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उजागर होते हैं – पालकी सदभावना का प्रतीक है , सब साथ मिल चलते हैं । इसके द्वारा जातिगत तथा अन्य सभी प्रकार की विविधता तोड़ने की भी भावना जागृत होती है । इसके मूल में असली भाव है समानता का । इस शोभायात्रा में सब सदभाव एवं आनंद — भाव से जाते हैं। इसके द्वारा बाबा श्रीगुरू का नाम स्मरण और उनके लिए दायित्व बोध का अनुभव होता है श्रीगुरु का नाम सकीर्तन और श्रवण करने एवं बाबा श्रीगुरू की फोटो को साथ लेकर चलने में श्रीगुरु के संग चलने का आनंदभाव का अनुभव होता है । उनकी फोटो या चरण पादुकाओं को साथ लेकर चलने से भक्तों में आध्यात्मिक प्रगति होती है । इससे लोगो में श्रीगुरु की सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है ।
प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी त्रि दिवसीय आयोजन बड़ी धूम धाम से मनाया जायेगा जिसमें आमजन शामिल होंगे । आयोजन की तैयारियां जोर शोर से जारी है ।

